Message by Er. B K Singh
Chairman, Brahmchari Baba Satsang Samiti

 

 


Message by Er. B K Singh
Chairman, Brahmchari Baba Satsang Samiti

हमारा हिन्दू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। इसे विश्व के सभी लोगों ने माना है एवं जाना है। हमारे हिन्दू धर्म में भगवान के विभिन्न स्वरूपों, अवतारों एवं देवी देवताओं का वर्णन है। मेरा ऐसा मानना है कि हिन्दू धर्म में भगवान के जितने भी स्वरूपों का वर्णन है सभी इस ब्रह्माण्ड में मौजूद हैं एवं इस ब्रह्माण्ड  का नियंत्रण करते हैं। सक्षम मनुष्य अपनी साधना, तपस्या योग एवं हठयोग के बल पर अपने आराध्य देव का साक्षात दर्शन करके अपने जीवन को धन्य बनाते हुये सुख, शांति एवं समृद्धि से परिपूर्ण होकर परोपकार के रास्ते पर चलते हुए अपना एवं जगत के कल्याण के काम में लग जाते हैं।

आम जन को भगवान का साक्षात्कार नहीं हो पाता है क्योंकि हम अपने सांसारिक गृहस्थ जीवन में इतने उलझे रहते हैं कि भगवत साक्षात्कार का कोशिश नहीं कर पाते हैं। हम भगवत पूजन एवं भगवत आराधना घर में या मंदिर में भगवान की मूर्ति के माध्यम से करते हैं। संत भगवान के प्रतिस्वरूप होते हैं जिन्हें भगवान अलग-अलग कालखण्ड में अलग-अलग जगहों पर आम जन के बीच भेजते हैं जो आम जन की तरह संसार में जन्म लेते हैं एवं सांसारिक नियमों का पालन करते हुये गृहस्थ आश्रम त्याग कर संत हो जाते हैं। संत से भगवान प्यार करते हैं एवं संत हम आम जन से प्यार करते हैं। हम आम जन संत के रूप में भगवान का दर्शन करके अपना जीवन धन्य करते हैं। संत का दर्शन, पूजन एवं सत्संग आम जन को हमेशा सुलभ रहता है।

संत के दर्शन पूजन एवं सत्संग से प्राणियों के दुखों का नाश होता है एवं सुखों की प्राप्ति होती है, पापों से मुक्ति मिलती है एवं कुविचार सुविचार में बदल जाते हैं। उसके बाद प्राणी सुख, शांति एवं समृद्धि से परिपूर्ण होकर परोपकार के रास्ते पर चलते हुए अपना एवं जगत के कल्याण के काम में लग जाता है। हमें अपनी प्राचीन परम्परा के जो भी गिने चुने संत अभी इस धरा पर मौजूद हैं उनका दर्शन, पूजन एवं सत्संग करके अपने जीवन को धन्य बनाना चाहिए।


समाज और संत के बीच
लोक कल्याण हेतु सेतु बनाने वाला
महापुण्य का भागी होता है।

परिश्रम और स्वावलम्बन का कोई विकल्प नहीं है।


जीवात्मा परमात्मा का ही अंश है। वह असीम अनंत चैतन्य शक्ति का ही प्रतिरूप है। अत: आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं। यह आत्मत्व ही पूरे संसार में परिव्याप्त है और इसी को लोग विश्वात्मा भी कहते हैं। भौतिकता के वशीभूत होकर जीव इस सत्य को भुला बैठता है और अपने को ही कर्ता मान लेता है। संसार की विषय वासनाओं से बंधा जीवन काया के वश में हो जाता है। संसार का आकर्षण, जीव द्वारा प्राप्त किया गया ऐश्वर्य जीव के पराभव का कारण बनता है - 'भव, विभव पराभव कारण।

इस पराभवता के कारण धर्म क्षीण होता जाता है, आसुरी प्रवृत्तियां बढ़ती जाती हैं। जब-जब ऐसी स्थिति आती है तब-तब महापुरुषों, संतों एवं ऋषियों का आविर्भाव होता है। राम और कृष्ण जैसे महापुरुषों ने अवतार लेकर जहां भारत को आसूरी प्रविर्तियों से मुक्त करके धर्म की पुरस्र्थापना की है वहीं इस देश की मिटटी ने कबीर, नानक, दादू, जायसी, सूरदास, तुलसीदास आदि संतों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपनी साधनात्मक उपलबिधयों से समाज में ऊर्जा भरी।

भगवान जब अनुग्रह करते हैं तो अपनी दिव्य ज्योति महापुरुषों में उतार देते हैं। वे अपने आचरण से लोगों को राह दिखाते हैं। गिरे हुए लोगों का उद्धार करते हैं। उनका 'अवतार होता है और दूसरी और लोगों का 'उद्धार होता है। 'अवतार और 'उद्धार की यह प्रक्रिया प्रभु के प्रेम का सक्रिय रूप है।

परमात्म शक्तियों का दिव्य प्रकाश, उसकी आभा संसार में सर्वत्र व्याप्त है। उसका प्रेम उसकी कृपा हम भी प्राप्त कर सकते हैं, बशर्ते हम अपने में उसे ग्रहण कर पाने की क्षमता पैदा कर लें। साधक अपनी साधना से ईश्वर और अपने बीच वह सेतु बना लेता है जिससे दिव्य शकितयों का प्रसार उस तक होने लगता है। हम इतनी साधना भले न कर सकें, पर यदि परमात्मा को साक्षी रखकर हम कार्य करें तो सांसारिक बंधन छूटने लगता है। हमारा दृष्टिकोण उदार और मन निर्मल हो जाता है। ईश्वर और हमारे बीच स्वत: वह सेतु बन जाता है कि ईश्वर की कृपा, उसका अनुग्रह हमें प्राप्त होने लगता है।

 अपना जीवन सुखी बनाने के लिये नीचे लिखे नियमों का पालन करना चाहिए :

 कभी निराश मत हों।
 आमदनी का कुछ हिस्सा बचा कर रखें।
 एक क्षण भी व्यर्थ नष्ट मत करें।
 परिश्रम, संयम और त्याग का अभ्यास करें।
 ईश्वर को हर समय अपने साथ देखें।
 आज का काम कल पर न छोड़े।

जिसने अपने आप पर नियंत्रण कर लिया वह अवश्य ही सफलता प्राप्त करता है। जब मनुष्य आत्म संयमी हो जाता है तो वह अपने में नियंत्रण करने में सफल हो जाता है तो वह परम शांति और मधुरता का अधिकारी हो जाता है। तब वह अपने लक्ष्य की और बढ़ता है और एक दिन सफलता को अवश्य प्राप्त करता, उन्नति का अधिकार पाता है, यह उसकी सबसे बड़ी विजय है।


सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु माँ कश्चिद् दु:खमाप्नुयात ।।

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Satsang Samiti

ब्रह्मचारी बाबा सत्संग समिति की स्थापना सन 2000ई. में भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली में समाज सेवा, देश एवं आध्यात्म की उन्नति के उद्देश्य से की गई।

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